नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक अपूर्वानंद का सच अब उनकी सहयोगी ही दिल्ली पुलिस को बता रही है। अपूर्वानंद बिहार में प्रगतिशील लेखक संघ के संस्थापकों में से एक हिन्दी साहित्य के प्रख्यात आलोचक डॉक्टर नंद किशोर नवल के दामाद हैं। अपूर्वानंद के पूर्व छात्र ही बताते हैं कि 2014 से पहले उपकी पहचान विश्वविद्यालय परिसर में कम्युनिस्ट शिक्षक की थी, लेकिन 2014 के बाद न जाने किस मजबूरी में उन्होंने गांधीवाद का चोला ओढ़ लिया। वैसे नक्सलियों के महानगरीय नेटवर्क का हिस्सा बने रहने के लिए कहा जाता है कि गांधीवाद का चोला सबसे मुफीद है। वैसे अपूर्वानंद स्टालिन, माओ, लेनिन के विचार से अधिक करीब हैं।
Delhi University professor had conspired in Delhi riots: accused Gulffishan
दिल्ली दंगों की आरोपी और यूएपीए एक्ट (Unlawful Activities (Prevention) Act) में गिरफ्तार गुलफिशा उर्फ गुल ने दिल्ली पुलिस के सामने दिए बयान में प्रोफेसर अपूर्वानंद के संबंध में बड़ा खुलासा कर दिया। जिससे अपूर्वानंद की दंगों में भूमिका बेहद संदिग्ध नजर आती है।
गुल के अनुसार अपूर्वानंद ने दंगों की साजिश की थी। उन्होंने दंगों के लिए ऐसी मुसलमान महिलाओं की टीम तैयार करवाई, जो बुर्का पहनती हों। जब यह टीम तैयार हो रही थी। उस दौरान प्रोफेसर अपूर्वानंद ने अपने टीम के लेागों को अगाह करते हुए बता दिया था कि दंगों के लिए तैयार रहो।
गुल के अनुसार — दंगों के बाद अपूर्वानंद की शाबाशी भी महिलाओं को मिली, लेकिन साथ ही साथ वे डर रहे थे कि उनका नाम दंगों में सामने न आ जाए। इसलिए उन्होंने अपना नाम सार्वजनिक न करने के लिए कहा।
साथ ही साथ गुल के अनुसार वे ‘पिंजड़ा तोड़’ के वामपंथी आरोपी युवतियों का नाम भी सामने नहीं आने देना चाहते थे।
गुल के अनुसार ‘पिंजड़ा तोड़’ एनजीओ की कॉमरेड देवांगना और कॉमरेड परोमा राय ने उन्हें अपूर्वानंद से मिलवाया था। अपूर्वानंद और राहुल रॉय का गुल से परिचय पिंजड़ा तोड़ के मार्गदर्शक के रूप में कराया गया। बाद के दिनों में इन मुलाकातों में जेएनयू का छात्र नेता उमर खालिद भी जुड़ गया।
गुल के अनुसार अपूर्वानंद ने समझाया कि ”नागरिकता कानून की आड़ में हम सरकार के खिलाफ बगावत का माहौल बना सकते हैं और सरकार को घुटने पर ला सकते हैं, इसलिए हमे इसका विरोध करना है।”
यह सब पढ़कर ऐसा लगता है कि चाहे सामने से सीएए और एनआरसी का विरोध करते हुए मुसलमान नजर आ रहे हों, लेकिन उनके पिछे बड़ा सहयोग कम्युनिस्ट और माओवादी गिरोह का रहा था।
अपूर्वानंद ने गुल से कहा— ”जामिया कॉर्डिनेशन कमिटी दिल्ली में 20-25 जगह पर आंदोलन शुरू करवा रही है। इस आंदोलन का मकसद भारत सरकार की छवि को ऐसे प्रस्तुत करना है जैसे ये सरकार मुसलमानों के खिलाफ हो। ये तभी संभव हो सकता है जब हम प्रदर्शन की आड़ में दंगे करवाएंगे।”
अपूर्वानंद की तरह देश भर में ऐसे वामपंथी प्राध्यापक बड़ी संख्या में एक—एक कर गिरफ्तार हो रहे हैं, जिनकी समाज के बीच पढ़ने और पढ़ाने वाले की छवि है, लेकिन वे भीतरखाने माओवादियों, आतंकियों, समाज को बांटने वालों की छवि में है। उनके जीवन का यह कुरूप पक्ष भारतीय जांच एजेन्सियों की जागरूकता की वजह से अब समाज के सामने आ रहा है।
गूगल की मदद से ‘राजस्थान पत्रिका’ में अजय श्रीवास्तव की एक खबर को आसानी से तलाशा जा सकता है। जिसका शीर्षक है, नंदिनी सुंदर की शिकायत करने वाले ग्रामीण को नक्सलियों ने दी सरेआम मौत। अजय श्रीवास्तव ने अपनी खबर में लिखा है—
”दिल्ली विश्वविद्यालय की प्राध्यापक नंदिनी सुंदर के खिलाफ दरभा थाने में शिकायत दर्ज कराने वाले सामनाथ कश्यप की नक्सलियों ने सरेआम हत्या कर दी। 4 अक्टूबर की रात बीस से अधिक नक्सली बस्तर और सुकमा जिले के सरहदी गांव कुमाकोलेंग के नामा पहुंचे और सामनाथ बघेल को घर से निकालकर चाकूओं से गोद कर उसे मार डाला।”
अजय इस खबर में आगे लिखते हैं —
”इस साल जून माह में दरभा थाने में नामा के ग्रामीणों ने नंदिनी सुंदर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत करने वालों की अगुआई सामनाथ ने ही की थी।
शिकायत में आरोप लगाया था, जून माह मे नंदिनी सुंदर ने ऋचा केशव छद्म नाम से जेएनयू की अर्चना प्रसाद व दो अन्य लोगों के साथ बस्तर भ्रमण के दौरान दरभा के नामा और कुमाकोलेंग का दौरा कर वहां ग्रामीणों को बैठक में शासन-प्रशासन व सुरक्षा बल के खिलाफ भड़काया था।”
ऋचा केशव उर्फ नंदिनी सुंदर दिल्ली विश्वविद्यालय में अपने तरह की अकेली प्राध्यापक नहीं हैं। एक लंबी श्रृंखला है दिल्ली विश्वविद्यालय में ऐसे प्राध्यापकों की जो नक्सलियों से सहानुभूति रखते हैं।
जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय को अर्बन नक्सलियों के लिए मिनी बस्तर बनाने की परियोजना को वहां के कुछ प्राध्यापकों ने आंशिक सफलता मिलते हुए जब पाया, तो उनका उत्साह बढ़ा।
इसी बढ़े हुए उत्साह में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में अपने लिए संभावनाएं तलाशी।
इसी संभावना का नाम नंदिनी सुंदर, हनी बाबू, प्रोफेसर जी एन साईं बाबा, अपूर्वानंद है और ना जाने कितने नाम सामने आने अभी शेष हैं।
नंदिनी सुंदर के पति सिद्धार्थ वरदराजन उनकी संदिग्ध गतिविधियों में सहयोगी नजर आते हैं।
सिद्धार्थ द वायर नाम के जिस प्रोपेगेन्डा वेबसाइट के संस्थापक संपादक हैं, वह कांग्रेस इको सिस्टम की वेबसाइट है। उसका काम सिर्फ भारतीय जनता पार्टी और उसके नेताओं के खिलाफ कांग्रेस की आईटी सेल की तरह काम करना है।
वायर आईटी सेल को अच्छे से चलाने के लिए सिद्धार्थ वरदराजन को अजीम प्रेमजी, आमिर खान, रोहिणी निलकेनी, किरन मजूमदार शॉ जैसे दिग्गजों के प्रयास से चल रहे एनजीओ आईपीएसएमएफ — इंडिपेन्डेन्ट एंड पब्लिक स्प्रीटेड फाउंडेशन (http://ipsmf.org/grantee-portfolio/) से आर्थिक सहायता मिलती है।
इस एनजीओ से कांग्रेसी इको सिस्टम को मजबूत करने के लिए काम करने वाली आधा दर्जन से अधिक वेबसाइट्स को सहायता प्राप्त हो रही है।
जनवरी 2018 में हुई भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हनी बाबू गिरफ्तार हुए।
भीमाकोरे गांव हिंसा के 200वें वर्षगांठ को जब एक समुदाय द्वारा समारोह के रूप में मनाए जाने की योजना बनी।
ऐसा लगता है कि यह समारोह उनके षडयंत्र का हिस्सा रहा होगा, जहां बाद में हुई हिंसा में, एक व्यक्ति मारा गया था और कई घायल हुए थे।
इस मामले में हनी बाबू के अलावा तीन प्राध्यापक और गिरफ्तार हुए।
इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि माओवाद भारत के शैक्षणिक और अकादेमिक परिवेश में कितने गहरे तक पैठा हुआ है।
भीमाकोरे गांव हिंसा मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर प्राध्यापक हनी बाबू समेत सुधा भारद्वाज (नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली), आनंद तेलतुमडे (इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट,गोवा) और शोमा सेन (नागपुर यूनिवर्सिटी) भी गिरफ्तार हुए।
वर्ष 2014 में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जी एन साईं बाबा को महाराष्ट्र पुलिस की एंटी नक्सल यूनिट ने गिरफ्तार किया था।
इस गिरफ्तारी के बाद डीयू कैंपस में नक्सलियों से सहानुभूति रखने वाले प्राध्यापकों ने ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की जैसे नक्सलियों से संबंध रखने के लिए प्राध्यापक की गिरफ्तारी से कानून—व्यवस्था का संकट उत्पन्न हो जाएगा। उनके सिस्टम के किसी भी व्यक्ति के खिलाफ जब कार्रवाई की बात आती है तो इस तरह का माहौल बनाने का प्रयास किया जाता है।
– आदित्य भारद्वाज